कोलकाता: सरकारी कोष से देश भर में पुस्तकालयों के लिए किताबें खरीदने का मानक तय करनेवाले राजा राममोहन राय पुस्तकालय प्रतिष्ठान पर मिलीभगत से पुस्तकों की खरीद-बिक्री का गंभीर आरोप लगा है.
अखिल भारतीय हिंदी प्रकाशक संघ ने इस संबंध में केंद्रीय मंत्री और विभिन्न सरकारी विभागों का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा है कि हाल में पुस्तकालयों में पुस्तकों की खरीद के लिए आवंटित करोड़ों रुपये नियमों को ताक पर रख कर कुछ प्रकाशकों और सरकारी अधिकारियों की जेब में पहुंचाये गये हैं.
पुस्तकालयों के लिए पुस्तकों का चयन करनेवाली कमेटी के कुछ सदस्य भी संदेह के घेरे में हैं. राजा राम मोहन राय पुस्तकालय प्रतिष्ठान की स्थापना 1972 में केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रलय द्वारा की गयी थी. राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासनों व संस्थानों के सहयोग से देश भर में लाइब्रेरी परिसेवा का विस्तार करना ही इसका लक्ष्य तय किया गया है.
पुस्तकों की खरीद के लिए हर वर्ष इसमें केंद्रीय चयन समिति की बैठक होती है. इसके जरिये निर्धारित करीब 10 करोड़ रुपये के बजट से खरीदी जानेवाली पुस्तकों की सूची को अंतिम रूप दिया जाता है. अधिकतर राज्य सरकारें भी पुस्तकालयों और वाचनालयों के लिए पुस्तकों की खरीद के लिए राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन के ही नियमों का पालन करती हैं. फाउंडेशन की चयन समिति की 41वीं बैठक गत वर्ष नौ व 10 दिसंबर को कोलकाता में हुई थी. बैठक में इसके 16 में से 11 सदस्य उपस्थित थे. बैठक में जो फैसले लिये गये उस पर सवाल उठ रहे हैं.
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