Google Tag Manager

Search Library Soup

Loading

Thursday, May 17, 2012

इंटरनेट के जमाने ने किताबों से रुसवा किया


करती हैं बातें, बीते जमानों की 
दुनिया की, इंसानों की
आज की कल की, एक एक पल की
खुशियों की, गमों की, फूलों की, बमों की
जीत की, हार की, प्यार की, मार की 
क्या तुम नहीं सुनोगे इन किताबों की बातें 


इटावा। सफदर हाशमी साहब ने किताबों पर लिखी इस कविता में पूरी दुनिया को समेट दिया था। शायद वे यही कहना चाहते थे कि किताबें हैं तो सब कुछ है। पर अब देखने की प्रवृत्ति ने पढ़ने के रुझान को मानों दबाकर रख दिया है। इंटरनेट के जमाने ने लोगों को किताबों से रुसवा कर दिया। लाइब्रेरियों में पाठकों की कभी भरमार हुआ करती थी। अब जैसे अकाल सा पड़ गया है। राजकीय जिला पुस्तकालय को ही लें। यहां पाठकों के रुझान के सिवा वह सब कुछ मुहैया है। कभी दर्जनों की भीड़ रहती थी अब महज 15-20 लोग ही आते हैं।
संसाधन जुटाने में कोई कसर बाकी नहीं
जिला लाइब्रेरी में पुस्तकों के शौकीनों की सुविधाओं का पूरा ख्याल रखा गया है। बिजली चली जाए तो जेनरेटर की व्यवस्था है। पीने के पानी के लिए वाटर कूलर और सबमर्सिबल पंप लगा है। पाठकों के लिए कूलर लगा है। रिजल्ट देखना हो तो इंटरनेट की सुविधा के साथ चार कंप्यूटर रखे हैं। रंगीन टीवी और उसके साथ डीवीडी भी उपलब्ध है।
31 हजार पुस्तकों का जखीरा
लाइब्रेरी की शोभा पुस्तकों और पाठकों से होती है। जिला लाइब्रेरी में 31 हजार पुस्तकें तो शोभा बढ़ाती नजर आती हैं, लेकिन यह शोभा पाठकों के न होने से फीकी पड़ जाती है। यहां बैंक आदि कंप्टीशन की तैयारी के लिए छात्रों के विषय उपयोगी किताबें हैं तो बुर्जगों को ध्यान रखते हुए धार्मिक पुस्तकें भी रखी गई हैं। महिलाआें और बच्चों के लिए भी पढ़ने योग्य काफी मैटेरियल है। चिल्ड्रन कार्नर में कार्टून किताबें भरी पड़ी हैं।
जबकि पाठकों की हकीकत यह है
अब अगर यहां आने वाले पाठकों की हकीकत जाने तो जुटाए गए यह संसाधन बेमानी से लगने लगते हैं। सुबह 10 से शाम 5 बजे तक खुलने वाले इस पुस्तकालय में बुधवार को दोपहर करीब एक बजे तक 8 पाठक पहुंचे थे। मुख्य स्टडी हाल में दो लोग अखबार पढ़ते मिले। इसके बाद एक दो लोग किताबों की अदला बदली के लिए पहुंचते रहे। यहां आए प्राइवेट टीचर ब्रजनीश कुमार शर्मा इस पुस्तकालय के सदस्य भी हैं। बताते हैं कि जब समय मिल जाता है, चले आते हैं। साथ बैठे प्राइवेट कंपनी में कार्यरत अरविंद कुमार श्रीवास्तव सिर्फ अखबार पढ़ने आए थे। वह यहां के सदस्य भी नहीं है। ऐसे ही ग्रेजुएट छात्र अरुण कुशवाह अपनी बहन वंदना के साथ यहां पहुंचे। दोनों को कंप्टीशन तैयारी से जुड़ी किताबें चाहिए थी। अरुण भी यहां के सदस्य हैं। रिजनिंग आदि की चार किताबें खुद ढूंढी और लेकर चले गए। अरुण के मुताबिक विगत 8 माह से जुड़े हैं।
514 पंजीकृत सदस्य है यहां
जिला पुस्तकालय में कुल 514 पंजीकृत सदस्य है। यह संख्या दर्शाती है कि 5 लाख की आबादी वाले इस शहर में महज पांच सौ लोगों में पढ़ने के लिए लाइब्रेरी जाने की रुचि है। पुस्तकालयाध्यक्ष केबी दोहरे व प्रचारक राकेश पांडेय खुद पाठकों में इस अरुचि को लेकर चिंता करते दिखते है। वह कहते है कि सदस्यता शुल्क भी अधिक नहीं है। बच्चों के लिए सुरक्षित निधि 500 व बड़ों के लिए एक हजार रुपए निर्धारित है। 50 रुपए वार्षिक शुल्क है। एक माह तक इश्यू किताब पढ़ी जा सकती है। कंप्यूटर पर रिजल्ट एवं नौकरी आदि से जुड़ी जानकारी इंटरनेट पर देखी जा सकती है। यह सब कुछ निशुल्क है।
पुस्तक मेला लगे तो मिले फायदा
सेवानिवृत्त साहित्य प्रेमी सुरेश चंद्र द्विवेदी मानते हैं कि पाठकों की रुचि बढ़ाने के लिए भागीरथी प्रयत्न जरूरी हैं। पुस्तक मेले समय-समय पर आयोजित हों, जिसमेें आने वालों को पुस्तकालय का महत्व बताया जाए।
Source: Amar Ujala

No comments:

Post a Comment

Librarianship is a noble profession and we feel proud to be among Librarian Community. Regular visit to Library Soup Blog (http://library-soup.blogspot.com/) is essential for easy and smooth functioning of Librarianship and for the better know how and understanding of the Profession. So, Keep Browsing Library Soup Blog !!!
Cheers !!!!!