गोड्डा/निप्र : कभी देशभक्तों की शरणस्थली रह चुकी मुख्यालय की हृदय स्थली पर अवस्थित केन्द्रीय पुस्तकालय आज प्रशासनिक व राजनीतिक उपेक्षा के कारण अस्तित्व बचाने के लिए संघर्षरत है। विशाल भवन के बावजूद बुद्धिजीवियों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है।
क्या है इतिहास
प्रख्यात समालोचक श्यामानंद घोष व समाजसेवी सच्चिदानंद साहा बताते हैं कि आजादी के वीर सपूतों ने 1940 में हिन्दी साहित्य परिषद की स्थापना की। स्वतंत्रता सेनानी सह प्रथम विधायक बुद्धिनाथ झा कैरब, शिवशंकर ठाकुर, महादेव परशुरामका, सागर मोहन पाठक व जगदीश नारायण मंडल ने आंदोलनकारियों के बीच संवाद का आदान-प्रदान करने व संरक्षण हेतु भवन निर्माण कराया था। आजादी के बाद यहां पुस्तक व पत्र-पत्रिकाओं का अधिक संग्रह हो गया। इसके कारण इसे पुस्तकालय में परिवर्तित कर दिया गया। तत्कालीन समय में अंचल व अनुमंडल शिक्षा पदाधिकारी के कार्यालय भी थे। जिसे 1980 में तत्कालीन एसडीओ आरएस शर्मा ने दूसरे जगह स्थानांतरित कराया और केन्द्रीय पुस्तकालय का नाम दिया। उन्होंने पुस्तकालय के सदस्य के रूप में पुस्तकालय को बुलंदी पर पहुंचा दिया। रामखेलावन सिंह को पुस्तकाध्यक्ष के रूप में बहाल किया गया। इसके बाद 1985 में ओंकार नाथ ने पुस्तकाध्यक्ष के रूप में योगदान दिया। तत्कालीन शिक्षा मंत्री के रूप में प्रदीप यादव के प्रयास से भव्य पुस्तकालय भवन बनकर तैयार हो गया। लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के कारण आजतक इसका विधिवत उद्घाटन नहीं हो पाया है। जबकि अनमोल पुस्तकें दीमककी भेंट चढ़ रही है।
क्या कहते हैं स्थानीय लोग
मिथिलेश कुमार, अमरनाथ साह, विजय साह, बबलू झा आदि का कहना है कि झारखंड राज्य गठन के पूर्व तक केन्द्रीय पुस्तकालय में जिले के विभिन्न गांवों के लोगों ने सदस्यता ग्रहण कर नियमित रूप से पुस्तकें पढ़ते थे। राज्य गठन के बाद नया भवन बना और उसके बाद से फिर नहीं खुल पाया है। जबकि सदस्य आज भी खुलवाने के प्रति प्रयासरत हैं।
क्या कहते हैं नगर पंचायत अध्यक्ष
नगर पंचायत अध्यक्ष अजीत कुमार सिंह का कहना है कि पुस्तकालय के विकास के लिए वे प्रयासरत हैं। इस संबंध में उन्होंने प्रयास भी किया लेकिन स्थानीय लोगों का सहयोग नहीं मिलने के कारण सफलता नहीं मिली है। इस संबंध में वरीय पदाधिकारियों से बात की जा रही है।
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