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मास्को नगर प्रशासन मास्को शहर में पुस्तकालयों के विकास के लिए एक ठोस कार्यक्रम तैयार कर रहा है। पिछले साल के आख़िर में यह बात सामने आई थी कि पाठकों ने अब पुस्तकालयों में आना कम कर दिया है, इसलिए अब पुस्तकालयों का रूप बदलकर उन्हें एक आधुनिक मल्टी-मीडिया सेंटर का रूप दे देना चाहिए।
इसके बाद, पिछले मई के महीने में मास्को की लाइब्रेरियों के प्रतिनिधियों ने लाइब्रेरी के विकास की अपनी-अपनी अवधारणा, अपनी-अपनी रूपरेखा नगर प्रशासन के पास भेजी। पुस्तकालयों के बदलाव के इस अभियान को नाम दिया गया -- पुस्तकालयों का पुनर्जन्म। पाठकों ने भी पुस्तकालयों के पुनर्जन्म के इस अभियान में बड़ी सक्रियता के साथ भागीदारी की। पता यह लगा कि लाइब्रेरियों के संचालकों और पाठकों ने लगभग एक-सी योजनाएँ प्रस्तुत कीं। उनका कहना है कि पुस्तकालयों या कुतुबख़ानों या लाइब्रेरियों को आज के ज़माने में सिर्फ़ किताबघर की भूमिका ही नहीं निभानी है, जहाँ क़िताबें ली और दी जाएँ, बल्कि उन्हें एक सांस्कृतिक केन्द्र का, एक विचार-विमर्श और बहस या चर्चा के केन्द्र का काम भी करना चाहिए। वहाँ रचनात्मक गतिविधियों को भी प्रोत्साहन दिया जाना जाना चाहिए। इसके अलावा पुस्तकालयों में आधुनिक तक्नोलौजी भी रखी जानी चाहिए।
मास्को के एक इंस्टीट्यूट के समाजशास्त्रियों ने इस सिलसिले में एक जन-सर्वेक्षण किया और लोगों से पूछा कि यदि लाइब्रेरियों में तमाम तरह के बदलाव कर दिए जाएँगे तो क्या वे फिर से लाइब्रेरी जाना शुरू कर देंगे। लेकिन पता लगा कि लोग इस तरह के बदलावों की बात सुनकर परेशान हो गए। आज मास्को में आम तौर पर स्कूली छात्र, अधेड़ और बूढ़ी औरतें तथा पुस्तक-प्रेमी ही पुस्तकालयों में जाते हैं। इनमें से ज़्यादातर लोगों का यह मानना है कि गम्भीर क़िताबों को पढ़ने के लिए ही लाइब्रेरी जाना चाहिए या फिर लाइब्रेरियों में काव्य-संध्याएँ आयोजित की जा सकती हैं और लेखकों-कवियों से भेंट-मुलाक़ातों का आयोजन किया जा सकता है। इसलिए वाई-फ़ाई जैसी नई सेवाओं को लोग पुस्तकालय जैसे मंदिर के लिए घातक मानते हैं।
वे मास्कोवासी, जो अक्सर लाइब्रेरी में नहीं जाते, उनका मानना है कि लाइब्रेरियों को सूचना-केन्द्र का काम भी करना चाहिए। उनके लिए यह ज़रूरी है कि वहाँ पुस्तकें ख़रीदी जा सकें, वहाँ कॉफ़ी पी जा सके, वहाँ कम्प्यूटर सेवाएँ तथा ऑन-लाईन सेवाएँ उपलब्ध हों और लाइब्रेरी में पुस्तकों की उपलब्धता के बारे में उन्हें घर-बैठे ही सारी जानकारी हो जाए। विशेषज्ञों का भी कहना है कि यदि ये सब सुविधाएँ रूस की राजधानी के पुस्तकालयों में जुटा दी जाएँगी तो 20-25 साल की उम्र के युवक-युवतियों को भी पुस्तकालयों की तरफ़ फिर से आकर्षित करना संभव हो जाएगा।
लेकिन जन-सर्वेक्षण में सामने आए विचारों को ध्यान में रखते हुए विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि पुस्तकालयों में ये अतिरिक्त सुविधाएँ जुटाते हुए बहुत सावधानी से काम लेना होगा। पुस्तकालयों में कॉफ़ी-हाउस, क़िताबों की दुकानें या विचार-विमर्श केन्द्र आदि सिर्फ़ प्रयोग के तौर पर शुरू किए जा सकते हैं। इसके अलावा मास्कोवासियों का यह भी कहना है कि पुस्तकालय की सदस्यता पूरी तरह से निशुल्क होनी चाहिए तथा वहाँ क़िताबें भी निशुल्क उपलब्ध होनी चाहिए।
मास्को में कुल 440 सरकारी पुस्तकालय हैं। क़रीब 27 लाख लोग नियमित रूप से इन पुस्तकालयों का इस्तेमाल करते हैं। मास्को में पहली सार्वजनिक लाइब्रेरी 17 वीं शताब्दी के मध्य में शुरू हुई थी। इसके बाद सभी लाइब्रेरियाँ विभिन्न सरकारी विभागों ने खोली, उन सभी के उद्देश्य अलग-अलग थे और उनमें क़िताबें भी अलग-अलग विषयों से सम्बन्धित हुआ करती थीं। लेकिन तभी से मास्को की पुस्तकालय-व्यवस्था लगातार विकास करती चली गई। वह लगातार जटिल होती चली गई। आज हालत यह है कि पूरे रूस में हज़ारों लाइब्रेरियाँ हैं। कोई बच्चों की लाइब्रेरी है तो कोई वैज्ञानिक लाइब्रेरी, कोई विदेशी साहित्य की लाइब्रेरी है तो कोई विदेशी भाषाओं में साहित्य की लाइब्रेरी। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इंटरनेट और कम्प्यूटर के इस युग में, ऑन लाइन क़िताबों के इस ज़माने में रूस में लाइब्रेरियाँ ज़िन्दा हैं और समय के साथ-साथ अपनी शक़्ल भी बदलती जा रही हैं।
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